हाईकोर्ट ने पति को पत्नी को हर महीने 80 हजार रुपये देने का निर्देश दिया था. हालांकि, याचिकाकर्ता पत्नी का कहना है कि पति की इनकम के कई जरिए हैं इसलिए 2,50,000 हर महीने मिलना चाहिए…
नईदिल्ली (ए)। सुप्रीम कोर्ट ने तलाक के मामले में फैसला सुनाते हुए अहम टिप्पणी की है. कोर्ट ने कहा कि तलाक की याचिका की पेंडेंसी के दौरान पत्नी उसी लाइफस्टाइल को मेंटेन करने की हकदार है, जिसकी हकदार वह मैरिड लाइफ में थीं. उन्होंने फैसला सुनाते हुए पति को निर्देश दिया है कि तलाक की कार्यवाही के दौरान वह पत्नी को हर महीने 1 लाख 75 हजार रुपये मेंटनेंस देंगे. जस्टिस विक्रम नाथ और जस्टिस प्रसन्ना बी. वराले की बेंच मामले पर सुनवाई कर रही थी।
बेंच ने कहा कि याचिकाकर्ता पत्नी का शादी के दौरान जिस तरह का लाइफस्टाइल था, वह डिवोर्स प्रोसिडिंग के दौरान भी होना चाहिए. बेंच ने यह भी कहा कि याचिकाकर्ता बेरोजगार हैं क्योंकि उन्हें शादी की वजह से नौकरी छोड़नी पड़ी. बेंच ने फैमिली कोर्ट का फैसला बरकरार रखा और पति को निर्देश दिया कि वह पत्नी के मेंटेनेंस के लिए 1,75,000 रुपये हर महीने देंगे।
याचिकाकर्ता की शादी 15 सितंबर, 2008 को हुई थी और उनको पति का पहली शादी से एक बेटा है, जबकि दूसरी शादी से कोई बच्चा नहीं है. पति ने साल 2019 में तलाक के लिए अर्जी दी थी. पति ने तलाक के लिए इनकंपैटिबिलिटी और लड़ाई-झगड़ों का हवाला दिया था. दोनों अभी साथ नहीं रह रहे हैं इसलिए पत्नी ने पति से हर महीने 2,50,000 लाख के इंटरिम मेंनटेनेंस की मांग की थी. पत्नी का कहना है कि उनका पति डॉक्टर है, कुछ प्रॉपर्टी किराए पर हैं और अलग से बिजनेस भी हैं, जहां से उन्हें इनकम होती है।
पत्नी की दलील पर फैमिली कोर्ट ने पति को डिवोर्स प्रोसिडिंग्स के दौरान हर महीने 1,75,000 रुपये के मेंटेनेंस का निर्देश दिया था. हालांकि, मद्रास हाईकोर्ट ने इस राशि को कम करके 80,000 रुपये महीना कर दिया, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने फैमिली कोर्ट के फैसले को ही बरकरार रखा है. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि पति की इनकम के कई जरिए हैं, लेकिन हाईकोर्ट ने सिर्फ दो सोर्स पर ही ध्यान दिया.
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि पति 1,25,000 रुपये डॉक्टर के तौर पर कमाते हैं. रेंटल प्रॉपर्टी से वह और उनकी मां को किराया आता है. इसके अलावा उनकी अपनी भी प्रॉपर्टी हैं और पिता की संपत्ति भी उनके पास है. साथ ही मां की प्रॉपर्टी से भी उन्हें पैसा आता है. सुप्रीम कोर्ट ने याचिकाकर्ता की अपील स्वीकार करते हुए 14 जून, 2022 का फैमिली कोर्ट का फैसला बरकरार रखा और मद्रास हाईकोर्ट के फैसले को रद्द कर दिया है।