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अगर हम पीड़ित की बातों को धैर्य पूर्वक सुन ले तो उनकी आधी तकलीफ दूर हो जाती है: ASP सुखनंदन राठौर

भिलाई (सारनाथ एक्सप्रेस)। मेरे पिताजी छोटे किसान थे और गांव के सरपंच भी रहें। हमारे गांव के पटवारी दिनानाथ पटेल थे, जिनको मै पटवारी बाबूजी कह कर संबोधित करता था, जिनसे मेरे पिताजी की बहुत अच्छी दोस्ती थी। पटवारी बाबूजी का बेटा भुवन और मै एक ही क्लास में पढ़ते थे तो हमारी भी अच्छी दोस्ती थी। आठवीं के बाद आगे की पढ़ाई के लिए भुवन बिलासपुर जा रहा था, तब पटवारी बाबूजी ने मेरे पिताजी से कहा कि सुखनंदन को भी बिलासपुर भेजो…। यह सब बाते अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक दुर्ग (शहर) सुखनंदन राठौर ने सारनाथ एक्सप्रेस के संपादक से विशेष बातचीत में कही, उन्होंने अपने अब तक के सफर को हमसे साझा किया।

एएसपी सुखनंदन राठौर मूलतः ग्राम किरारी- बाराद्वार, जिला सक्ती (तत्कालीन जिला बिलासपुर) से है। उनकी पहली से आठवीं तक की शिक्षा ग्राम किरारी के ही शासकीय स्कूल में हुई। कक्षा नवमी से बारहवीं (गणित) तक की शिक्षा उन्होंने शासकीय विद्यालय,बिलासपुर से पूरी की।

वर्ष 1995 में उन्होंने बीएससी (गणित) में एसएमडी कॉलेज, बिलासपुर से स्नातक की शिक्षा पूर्ण की। वर्ष 1997 में एसएमडी कॉलेज, बिलासपुर से ही उन्होंने बीएससी (रसायन) से स्नातकोत्तर की डिग्री हासिल की। स्नातकोत्तर में गुरु घासीदास विश्वविद्यालय, बिलासपुर के टॉपर रहे और गोल्ड मेडल से पुरस्कृत हुए। उन्होंने नेशनल कैडेट कॉर्प्स (एनसीसी) में “सी” सर्टिफिकेट भी हासिल किया और वर्ष 1994 में गणतंत्र दिवस पर नई दिल्ली परेड में भी शामिल हुए।

एनसीसी के दौरान ही उन्हें वर्दी ने आकर्षित किया और उन्होंने पुलिस में जाने का निर्णय लिया। उन्होंने तीन बार सब इंस्पेक्टर की परीक्षा दी पर कुछ अंकों से चुक गए और असफल रहे।

सीएमडी कॉलेज में बतौर असिस्टेंट प्रोफेसर (संविदा) नौकरी ज्वाइन की और वर्ष 1997 से 1998 तक अपनी सेवाएं दी। दिसंबर 1998 में शिक्षाकर्मी (व्याख्याता, रसायन) के पद पर नौकरी ज्वाइन किया। उन्हें शासकीय उच्चतर माध्यमिक विद्यालय, बोड़सरा नैला (जांजगीर-चांपा) में पोस्टिंग मिली। शिक्षाकर्मी में उन्होंने 2010 तक अपनी सेवाएं दी इस दौरान वर्ष 2007 में उन्नत शिक्षण संस्थान, बिलासपुर से बीएड की भी डिग्री हासिल किया।

वर्ष 2005 के सीजी पीएससी एग्जाम में भाग लिये जिसका रिजल्ट 2007 में घोषित हुआ उसमें वेटिंग लिस्ट में पहले नम्बर पर रहे। वेटिंग क्लियर कर वर्ष 2010 में उप पुलिस अधीक्षक (डीएसपी) के लिए चयनित हुए। जवाहरलाल नेहरू पुलिस अकादमी, सागर (मप्र) में ट्रेनिंग के पश्चात प्रशिक्षु जिला रायपुर मिला, जहां उन्होंने सितंबर 2013 तक अपनी सेवाएं दी। उनकी पहली पोस्टिंग एसडीओपी, भोपालपटनम जिला बीजापुर के पद पर हुई, जहां उन्होंने अगस्त 2016 तक अपनी सेवाएं दी, इस दौरान डीएसपी नक्सल आपरेशन के अतिरिक्त चार्ज पर भी पदस्थ रहे।

अगस्त 2016 से अगस्त 2017 तक नगर पुलिस अधीक्षक (सीएसपी) दर्री (कोरबा) के पद पर अपनी सेवाएं दी, इस दौरान दर्री थाना को ISO सर्टिफाइड थाना बनाने में अहम भूमिका निभाई। अगस्त 2017 से अगस्त 2018 तक नगर पुलिस अधीक्षक (सीएसपी) कोतवाली रायपुर के पद पर अपनी सेवाएं दी।

अप्रैल 2018 में उनका प्रमोशन हुआ, डीएसपी से एएसपी बनाए गए साथ ही उन्हें अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक, रायपुर (ग्रामीण) की जिम्मेदारी सौंपी गई, जहां उन्होंने फरवरी 2019 तक अपनी सेवाएं दी। फरवरी 2019 से जुलाई 2021 तक अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक गरियाबंद के पद पर रहे, इस दौरान उनके नेतृत्व में फिंगरेश्वर थाना क्षेत्र में कई दिनों से चल रहे हाई प्रोफाइल जुआ को पकड़ने के लिए बाराती बनकर रेड कार्यवाही की और एक दर्जन से अधिक जुआडियो को पकड़ने में सफलता हासिल की।

जुलाई 2021 से मार्च 2024 तक अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक (एटीएस) पुलिस मुख्यालय, रायपुर के पद पर अपनी सेवाएं दी। मार्च 2024 से अभी तक अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक दुर्ग (शहर) की जिम्मेदारी संभाल रहे है।

स्वामी विवेकानंद, अपनी पिताजी और पटवारी बाबूजी को अपना आदर्श मानने वाले एएसपी सुखनंदन राठौर कुकिंग, अभिनय और मंच संचालन करने में विशेष रुचि रखते है। उन्होंने जन जागरुकता पर बनी 8 शॉट फिल्म में अभिनय भी किया।

एएसपी सुखनंदन राठौर ने बताया कि जब पटवारी बाबूजी ने पिताजी से मुझे आगे की पढ़ाई के लिए दोस्त भुवन के साथ बिलासपुर जाने के लिए कहा तो पिताजी ने पैसे को लेकर जाने से मना कर दिये थे, तब पटवारी बाबूजी ने पिताजी से कहा कि इस लड़के को मै पढ़ाऊंगा, फिर पटेल परिवार ने मुझे पढ़ाया। वो मेरे आदर्श है, वो मुझे सहयोग के लिए हमेशा तत्पर रहे, कोई आगे बढ़ता है तो उसे सहयोग करते है। उनका स्वभाव भी मेरे अंदर आ गया है, मै भी लोगों की मदद करता हूं, मै उनका ऋणी हूं। मेरे जीवन के इस कहानी पर द्वारका प्रसाद अग्रवाल जो कि साहित्यकार और मोटिवेशनल स्पीकर है उन्होंने “तेरी मेरी कहानी” नामक शीर्षक पर एक किताब भी लिखा है।

एएसपी सुखनंदन राठौर ने कहा कि मेरे माता-पिता दोनों नहीं है, जब मेरी पोस्टिंग कोरबा में हुई थी, तब मेरे एक दोस्त ने हंसी – मजाक में कह दिया कि तेरे तो मां-बाप दोनों नहीं है, तो मै बहुत दुखी हुआ फिर मैने उसे जवाब दिया कि मेरे पास जितने बुजुर्ग है वो सभी मेरे मां-बाप है, जो भी पीड़ित बुजुर्ग मेरे पास आते है उन्हें अपना मां-बाप समझकर ट्रीट करता हूं, जिसके कारण लोगों से अपनापन सा लगाव हो जाता है। वैसे भी पुलिस के पास पीड़ित लोग ही आते है अगर हम उनकी बातों को धैर्य पूर्वक सुन ले तो उनकी आधी तकलीफ दूर हो जाती है।

एएसपी सुखनंदन राठौर ने बताया कि जब वो सब इंस्पेक्टर के एग्जाम में तीन बार असफल हुए और उनके रूम पार्टनर सलेक्ट हो गए तो उनके रूम पार्टनर्स ने पासिंग परेड ग्राउंड में पुलिस में भर्ती होने की उन्हें शपथ दिलवाई की दो स्टार लगाना है। तब से वो पुलिस अकादमी, सागर (मप्र) में ट्रेनिंग लेते हुए कई बार सपना देखे और छत्तीसगढ़ राज्य बनने के 10 साल बाद भी वेटिंग क्लियर होते ही उन्हें पुलिस ट्रेनिंग के लिए सागर (मप्र) भेजा गया, ऐसे में उनका देखा हुआ सपना हकीकत में बदल गया।

एएसपी सुखनंदन राठौर ने बताया कि जब मै गांव में रहता था तब हमारे गांव में एसडीम या एसडीओपी आते थे तो रुकते नहीं थे तब मैं चिल्लाता था, गुस्सा व्यक्त करता था। बत्ती वाली गाड़ी देख कर मेरे दोस्त चिढ़ाने लग गए थे कि तेरी बत्ती वाली गाड़ी आ गई, तब मैं उनको बोलता था कि एक दिन यह गाड़ी मेरे पास होगी और आज वो बत्ती वाली गाड़ी मेरे पास है।

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