सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को कहा कि पतियों के क्रूरता का आरोप लगाने के लिए दहेज की मांग का जिक्र करना जरूरी नहीं है। 1983 में आईपीसी में धारा 498ए को विवाहित महिलाओं को पति और ससुराल वालों की क्रूरता से बचाने के लिए जोड़ा गया था। न्यायमूर्ति विक्रम नाथ और प्रसन्ना बी वराले की पीठ ने आंध्र प्रदेश उच्च न्यायालय के फैसले को खारिज करते हुए यह टिप्पणी की…
नईदिल्ली (ए)। सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को कहा कि पतियों के क्रूरता का आरोप लगाने के लिए दहेज की मांग का जिक्र करना जरूरी नहीं है। 1983 में आईपीसी में धारा 498ए को विवाहित महिलाओं को पति और ससुराल वालों की क्रूरता से बचाने के लिए जोड़ा गया था।
न्यायमूर्ति विक्रम नाथ और प्रसन्ना बी वराले की पीठ ने आंध्र प्रदेश उच्च न्यायालय के फैसले को खारिज करते हुए यह टिप्पणी की। आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट ने एक युवक और अन्य के खिलाफ दर्ज मुकदमे को यह कहकर रद्द कर दिया था कि आरोपों में दहेज की मांग का जिक्र नहीं है, इसलिए धारा 498 ए के तहत क्रूरता का अपराध साबित नहीं होता। इसके बाद युवक की पत्नी ने सुप्रीम कोर्ट का रुख किया था।
सुप्रीम कोर्ट ने अपील पर गौर करने के बाद मुकदमे को रद्द करने के लिए आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट के फैसले को खारिज कर दिया। कोर्ट ने कहा कि धारा 498 ए में क्रूरता का कृत्य शामिल है। पति और ससुरालीजनों के खिलाफ इस प्रावधान को लागू करने के लिए दहेज की मांग करने का आरोप लगाना जरूरी नहीं है।
पीठ ने कहा कि 1983 में धारा 498 ए को आईपीसी में विवाहित महिलाओं को पति और ससुरालियों की क्रूरता से बचाने के लिए जोड़ा गया था। इसके दोनों खंड ए और बी में क्रूरता को लेकर प्रावधान किए गए हैं। पहला किसी महिला को जानबूझकर शारीरिक या मानसिक चोट पहुंचाना और दूसरा महिला और उसके परिवार को गैर कानूनी मांग को पूरा करने के लिए मजबूर करना। दोनों ही प्रावधान क्रूरता की व्यापक व्याख्या करते हैं।
कोर्ट ने अपने आदेश में 1983 में संसद में धारा 498 ए को लाने के कारण और उद्देश्य का भी जिक्र किया। कोर्ट ने कहा कि यह तब लाया गया जब देश में दहेज हत्याएं बढ़ रही थीं। कोर्ट ने संसद में दिए गए बयान को लेकर कहा कि यह प्रावधान न केवल दहेज हत्या बल्कि महिलाओं के साथ ससुरालियों द्वारा की जा रही क्रूरता के लिए भी किया गया है।