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मुद्रा योजना बदलाव की मिसाल, 33 लाख करोड़ रुपये से बदली करोड़ों की जिंदगी : पीएम मोदी
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मुद्रा योजना बदलाव की मिसाल, 33 लाख करोड़ रुपये से बदली करोड़ों की जिंदगी : पीएम मोदी

अब तक 52 करोड़ से ज्यादा ऋण दिए जा चुके हैं, जिनकी कुल राशि 33 लाख करोड़ रुपये है। प्रधानमंत्री ने कहा कि यह योजना उनकी जमीनी स्तर की यात्राओं और अनुभव से उपजी,जब उन्होंने महसूस किया कि समाज के सबसे निचले तबके को “बिना गारंटी फंडिंग” की काफी जरूरत है…

 

नईदिल्ली (ए)। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मंगलवार को कहा कि प्रधानमंत्री मुद्रा योजना (PMMY) ने बीते 10 वर्षों में देश के गरीबों और छोटे उद्यमियों को आर्थिक रूप से सशक्त किया है। उन्होंने बताया कि इस योजना के तहत अब तक 52 करोड़ से ज्यादा ऋण दिए जा चुके हैं, जिनकी कुल राशि 33 लाख करोड़ रुपये है। प्रधानमंत्री ने कहा कि यह योजना उनकी जमीनी स्तर की यात्राओं और अनुभव से उपजी,जब उन्होंने महसूस किया कि समाज के सबसे निचले तबके को “बिना गारंटी फंडिंग” की काफी जरूरत है।

प्रधानमंत्री ने कहा कि मुद्रा योजना ने भारत की वित्तीय व्यवस्था को लोकतांत्रिक बनाया और यह एक बड़ी सफलता है कि इस योजना के तहत सिर्फ 3.5% ऋण ही NPA (नॉन-परफॉर्मिंग एसेट) बने हैं। उन्होंने ‘एक्स’ पर एक पोस्ट में इकोनाॅमिक टाइम्स को दिया गया इंटरव्यू भी साझा किया जिसमें उन्होंने इस योजना की शक्ति और महत्व को बताया है।

उन्होंने कहा कि 2014 में सत्ता में आने के बाद सरकार ने वित्तीय व्यवस्था को जन-केंद्रित बनाने का फैसला किया। पहले “बैंकिंग द अनबैंक्ड” के तहत जनधन योजना शुरू की गई, फिर “फंडिंग द अनफंडेड” के रूप में मुद्रा योजना लाई गई, और फिर “इंश्योरिंग द अनइंशोर्ड” के लिए जन सुरक्षा योजनाएं शुरू की गईं। पीएम ने कहा कि यह पूरी सोच एक व्यापक दृष्टिकोण का हिस्सा है, जिसका उद्देश्य देश के गरीब, महिला, किसान और वंचित वर्ग को मुख्यधारा में लाना और उनके सपनों को पूरा करने का अवसर देना है।

उन्होंने यह भी कहा कि जब यह योजना शुरू हुई तो कई विपक्षी नेताओं और विशेषज्ञों ने आशंका जताई कि इतने बड़े स्तर पर छोटे ऋण देने से NPA बढ़ेगा। लेकिन नतीजे इसके उलट निकले और मात्र 3.5% ऋण खराब हुए। मोदी ने कहा कि यह उस विश्वास का परिणाम है जो सरकार ने गरीब और मध्यम वर्ग के लोगों पर दिखाया।

प्रधानमंत्री ने कांग्रेस के कार्यकाल में बैंकिंग सेक्टर की स्थिति की तुलना करते हुए कहा कि तब ‘फोन बैंकिंग’ के जरिए केवल राजनीतिक संपर्क वालों को ही बड़े ऋण दिए जाते थे, जिससे बैंकों पर भारी दबाव पड़ा। इसके उलट, मुद्रा योजना ने बिना किसी संपर्क के, केवल योग्यता और मेहनत के आधार पर लोगों को मौका दिया, जिससे आर्थिक गतिविधियां निचले स्तर से आगे बढ़ीं।

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